UPI करने वालों को बड़ा झटका, अब पेमेंट पर लगेगा चार्ज, PhonePe, Google Pay ने सरकर से की एमडीआर मांग

अगर आप यूपीआई या रूपे डेबिट कार्ड से पेमेंट करते हैं, तो यह खबर आपके लिए बेहद अहम है। पेमेंट काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर ‘जीरो एमडीआर’ पॉलिसी को हटाने की मांग की है। उनका कहना है कि बिना मर्चेंट डिस्काउंट रेट (MDR) के डिजिटल पेमेंट सिस्टम को चलाना मुश्किल हो रहा है। दूसरी ओर सरकार इसे डिजिटल इंडिया की कामयाबी का हिस्सा मानती है और इसे मुफ्त रखना चाहती है। आखिर यह एमडीआर है क्या और क्यों इस पर इतना बवाल हो रहा है? चलिए इसे आसान शब्दों में समझते हैं।

एमडीआर का मतलब क्या है?

सीधे शब्दों में कहें तो एमडीआर वह छोटी-सी फीस है, जो दुकानदारों को डिजिटल पेमेंट की सुविधा के लिए चुकानी पड़ती है। जब आप दुकान पर क्यूआर कोड स्कैन करते हैं या कार्ड स्वाइप करते हैं तो पैसा तुरंत दुकानदार के खाते में नहीं जाता। इसके पीछे बैंक, पेमेंट गेटवे और टेक्नोलॉजी कंपनियां काम करती हैं जो इस लेनदेन को पूरा करती हैं। इस प्रक्रिया का खर्च उठाने के लिए एमडीआर लिया जाता है।

जब 2016 में यूपीआई शुरू हुआ तो उस पर एमडीआर था। लेकिन 2020 में सरकार ने इसे खत्म कर दिया ताकि ज्यादा से ज्यादा दुकानदार डिजिटल पेमेंट अपनाएं। इस कदम से यूपीआई और रूपे का इस्तेमाल बढ़ा और भारत में डिजिटल लेनदेन ने रफ्तार पकड़ी।

WhatsApp Channel Join Now
Telegram Channel Join Now

जीरो एमडीआर से क्या बदला?

2020 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ऐलान किया कि यूपीआई और रूपे ट्रांजैक्शंस पर कोई एमडीआर नहीं लगेगा। नतीजा? छोटे दुकानदारों से लेकर बड़े व्यापारियों तक सभी ने क्यूआर कोड और डिजिटल पेमेंट को हाथों-हाथ लिया। चाय की टपरी से लेकर सुपरमार्केट तक हर जगह ‘स्कैन एंड पे’ का चलन बढ़ गया। सरकार इसे कैशलेस इकोनॉमी की ओर बड़ा कदम मानती है।लेकिन अब दिक्कत यह है कि इस सिस्टम को चलाने का खर्च कौन उठाएगा? PhonePe, Google Pay और बैंकों का कहना है कि वे मुफ्त में इसे नहीं चला सकते।

पेमेंट कंपनियों का तर्क एमडीआर जरूरी क्यों?

PCI और डिजिटल पेमेंट कंपनियों का कहना है कि जीरो एमडीआर की वजह से उन्हें नुकसान हो रहा है। उनका तर्क है कि बिना किसी चार्ज के सिस्टम को मेंटेन करना और नई टेक्नोलॉजी में निवेश करना मुश्किल है। PCI ने सुझाव दिया है कि जिन छोटे व्यापारियों का सालाना टर्नओवर 1 लाख से कम है उन्हें छोड़कर बाकी से 0.3% एमडीआर लिया जाए। उनका मानना है कि इससे एक ऐसा रेवेन्यू मॉडल बनेगा जिससे डिजिटल पेमेंट सिस्टम लंबे वक्त तक मजबूत रह सकेगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो भविष्य में यह सिस्टम कमजोर पड़ सकता है।

सरकार क्यों है परेशान?

सरकार को डर है कि अगर एमडीआर वापस आया तो दुकानदार यह बोझ ग्राहकों पर डाल देंगे। मिसाल के तौर पर अगर आप 100 रुपये का सामान खरीदते हैं तो दुकानदार आपसे 100.30 रुपये ले सकता है। इससे डिजिटल पेमेंट महंगा लगेगा और लोग फिर से कैश की ओर लौट सकते हैं। सरकार नहीं चाहती कि डिजिटल इंडिया की रफ्तार पर ब्रेक लगे।

एमडीआर लौटा तो क्या होगा?

अगर सरकार एमडीआर लागू करने का फैसला करती है तो इसके कई तरह के असर देखने को मिल सकते हैं। सबसे पहले डिजिटल पेमेंट्स महंगे हो सकते हैं, क्योंकि दुकानदार इस अतिरिक्त चार्ज को ग्राहकों पर डाल सकते हैं जिससे आम लोगों को ज्यादा पैसे चुकाने पड़ें।

दूसरा, छोटे व्यापारियों के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं जहां बड़ी दुकानों या कंपनियों पर शायद इसका असर कम पड़े वहीं छोटे दुकानदारों को इस बदलाव से परेशानी हो सकती है। तीसरा, पेमेंट कंपनियों को फायदा होगा क्योंकि उन्हें एमडीआर से पैसा मिलेगा जिसका इस्तेमाल वे डिजिटल सिस्टम को बेहतर और मजबूत करने में कर सकेंगी।

लेकिन चौथा और अहम असर यह हो सकता है कि अगर डिजिटल पेमेंट महंगा लगने लगा तो लोग दोबारा नकद लेनदेन की ओर लौट सकते हैं जो डिजिटल इंडिया के मिशन के लिए झटका साबित हो सकता है।

Leave a Comment